मेरी कलम सरगुजस्त आप कि...
मेरी कलम सरगुजस्त आप कि... सरगुजस्त साल भर कि सुन फलसफी ब्यान, बात साफ गो कि सुन क्या खबर, हर खबर कि खास खबर सुन क्या-क्या खयाल आम, सदा हर तरफ कि सुन हल-ए-जार इबतदा ता साबका कि सुन हिज्र वाली दास्तां, दर्द इंतेजार सुन तुम कहो तुम कहो,क्या लखनवी अदब था आप लोग मे चाहत तुफानी और लबों पे अदा का पहरा नजर मिलाते शर्माते, क्या शिलशिला था आप लोग मे आँखों से क्या जाहिर हो, ईश्क दफन हो कल्ब मे गहरा चाँद को ताके चाँद ही जाने, क्या मर्हला था आप लोग मे तंहाई मे चाँद कहे, सामने आकर फेर ले चेहरा सुबह-शाम वर्द आपकी, आपकी गली... क्या शिलशिला था आप लोग मे गर्दीश होती तेरे घर कि, कया गुलशन क्या सहरा जंगी सा माहौल बना था, क्या हौसला था आप लोग मे शान दर्ज डायरी है, खम हो गालिब-दौरा सरगुजस्त साल भर कि सुन फलसफी ब्यान बात साफ गो कि सुन क्या खबर, हर खबर कि खास खबर सुन क्या क्या खयाल आम, सदा हर तरफ कि सुन अब शुरू से दास्तां, आज तक कि सुन सरगमी फिजा कि यह गजल भी सुन किस नाज से, अंदाज, से उल्फत के अरकान अदा करते है इस चमन मे बुल-बुल गुफतार करे और गुल हया करते है दर असल ये सखी इब्न सखी, दिल कि आरजु अता करते ...