गैर संचारी रोगियों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है।
गैर संचारी रोग वह बीमारियां है जो एक व्यक्ति से दूसरे में संचारित नहीं होती है, अर्थात यह रोग गैर संक्रामक होती है। हृदय रोग, कैंसर, दमा एवं सांस की मु मुजमिन बीमारियां और मधुमेह, गैर संचारी रोगों की श्रेणी में चार प्रमुख घातक बीमारियां है। पूरी दुनिया में गैर संचारी रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। भारत में भी इन रोगों की समस्या गंभीर है, जिसे और अधिक भ्यावह होने की आशंका है। कुछ वर्ष पूर्व तक यदा-कदा होने वाली बीमारी आज सामान्य रूप से देखने को मिलती है। मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर जैसे घातक रोगों का प्रसार पिछले कुछ वर्षों में काफी तेजी से हुआ है। गैर संचारी रोगों के विकराल रूप का कारण तेजी से बदलती जीवन शैली, आहार, व्यवहार एवं आधुनिक तकनीक पर निर्भरता है। यदि समय रहते सचेत नहीं हुआ गया तो इसके घातक परिणाम से व्यापक स्तर पर जान माल की क्षति होगी। सामान्यतः गैर संचारी रोगों का इलाज लंबे समय तक चलता है, और महंगा भी होता है। ससमय समुचित इलाज नहीं होने की स्थिति में परिणाम घातक होता है।
जिन चीजों के कारण गैर संचारी रोग होता है उसे उस रोग का जोखिम कारक कहते हैं। गैर संचारी रोगों के जोखिम कारक दो प्रकार के होते हैं।
1. अप्रवर्तनीय जोखिम कारक: जैसे आयु, लिंग, परिवारिक इतिहास तथा
2. परिवर्तनीय जोखिम कारक: जिसमें परिवर्तन या संशोधन करके इन रोगों का रोकथाम संभव है।
यूनानी चिकित्सा से गैर संचारी रोगों का नियंत्रण
यूनानी चिकित्सा विज्ञान में जीवन हेतु 6 मूलभूत आवश्यक कारकों का वर्णन है, जिसे आबाबे सित्ता जरूरिया कहा जाता है। यह गैर शारीरिक कारक हैं जो जीवन के लिए आवश्यक है। आबाबे सित्ता जरूरिया में पर्याप्त सामंजस्य एवं गुणवत्ता से शरीर स्वस्थ रहता है। आबाबे सित्ता जरूरिया में से किसी एक या अधिक के दूषित होने अथवा इन के दरमियान सामंजस्य के भंग होने से शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है।
आबाबे सित्ता जरूरिया निम्न है
1. पर्यावरणीय हवा : हवा जीवन हेतु आवश्यक कारक है। हवा अपने घटक, गुणवत्ता तथा कैफियत से शरीर पर अपना प्रभाव डालता है। हवा की गर्मी, शीतलता, आद्रता एवं शुष्कता हवा की कैफियत कहलाता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुद्ध एवं प्रदूषण रहित हवा के साथ भीड़भाड़ और कम हवादार स्थानों से दूर रहें। हवा के कैफियत के अनुकूल वस्त्र एवं खानपान का पालन करें।
2. खान पान : शारीरिक वृद्धि, संरक्षण, विकास तथा क्रियाकलाप हेतु उर्जा के लिए आहार एवं पेय पदार्थ आवश्यक है। शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आहार की मात्रा एवं प्रकार, व्यक्ति के आयु, लिंग, शारीरिक संरचना तथा गतिविधियों पर निर्भर करता है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार, पर्याप्त मात्रा में आवश्यक है। अस्वस्थकारी, दूषित आहार एवं पेय पदार्थ रोगों का कारण बनता है। शुद्ध आहार पर्याप्त मात्रा में सेवन करके गैर संचारी रोगों से बचा जा सकता है। गैर संचारी रोगों से ग्रसित होने की स्थिति में आहार संबंधी चिकित्सीय परामर्श का पालन करना चाहिए। स्वास्थ्य रक्षा के लिए तंबाकू, नशा का सामान का सेवन नहीं करें। प्रोसेसड खाद्य पदार्थ से यथासंभव बचें, पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। अधिक ठंडा पेय पदार्थों का सेवन न करें।
3. शारीरिक गतिविधियां एवं विश्राम (हरकत व सुकून बदनी) : स्वास्थ्य के लिए शारीरिक गतिविधियां एवं विश्राम दोनों आवश्यक है। गतिशीलता से दूषित पदार्थ शरीर से निकलता है। विश्राम पाचन में सहायक है। पर्याप्त शारीरिक गतिशीलता एवं आराम से शरीर में विषाक्त पदार्थों का जमाव नहीं होता है, जिस से शरीर स्वस्थ रहता है।
4. मानसिक गतिविधियां एवं विश्राम (हरकत व सुकून ए नफसानी) : विभिन्न मानसिक अवस्थाएं रूह की गतिशीलता एवं विश्राम पर आधारित है। इसकी क्रियाशीलता से गर्मी जबकि विश्राम से शीतलता बढ़ती है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए आध्यात्मिक व्यायाम करें, सकारात्मक मनोवृति अपनाएं, मानसिक गतिविधियों की अधिकता से बचें, पर्याप्त विश्राम करें, सामाजिक कार्यों में रुचि लें।
5. सोना एवं जागना (नौम व यकजा): नौम व यकजा उत्तम स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, इसी प्रकार ऐच्छिक क्रियाओं के लिए जागना आवश्यक है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए हर व्यक्ति अपनी आयु, स्वभाव एवं मौसम के अनुसार पर्याप्त नींद लें। अत्यधिक सोने से बचें क्योंकि यह शरीर में शीतलता एवं शिथिलता पैदा करता है। इसी प्रकार अत्यधिक जगने से शरीर में गर्मी एवं शुष्कता पैदा होता है।
6. निष्क्रमण एवं अवधारण (इस्ताफ्राग व एहतेबास): पाचन एवं अन्य शारीरिक क्रियाओं के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार की गैर आवश्यक एवं विषाक्त पदार्थों का भी निर्माण होता है, जिसे शरीर से बाहर निकालना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, जैसे मल, मूत्र, पसीना, सांस छोड़ना। इसी प्रकार शरीर में आहार एवं पेय पदार्थों से स्वास्थ्यवर्धक एवं पोषण पोषक पदार्थों का निर्माण होता है, जिसका शरीर में रुकना आवश्यक है। जिन पदार्थों का शरीर से बाहर निकलना है यदि इसका जमाव होने लगे अथवा वह पदार्थ जिन्हें शरीर में रुकना आवश्यक है यदि शरीर से बाहर निकलने लगे तो यह रोग का कारण बन जाता है। शरीर के संतुलित एवं व्यवस्थित निष्क्रमण एवं अवधारणाओं के लिए अन्य सभी मूलभूत आवश्यक कारकों में सामंजस्य आवश्यक है।
आबाबे गैर जरूरिया, वह कारक है जो स्वास्थ पर अपना प्रभाव डालता है जैसे व्यवसाय, पर्यावास, आदत इत्यादि। इसे गैरजरूरी जा कहा जाता है क्योंकि इसके बिना जीवन संभव है।
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