भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति सिकंदर के आक्रमण से पहले से ही प्रचलित है

 यूनानी चिकित्सा भारत की देशी चिकित्सा पद्धति है, जो कि भारतीय परिवेश के अनुकूल है। इस चिकित्सा विज्ञान की उत्पत्ति ग्रीक सभ्यता के स्वर्णिम युग में हुआ था, जहां से यह संपूर्ण विश्व में फैल कर लोकप्रिय हो गई। भारत में यूनानी चिकित्सा के आगमन के संबंध में ज्यादातर इतिहासकार लिखते हैं कि यह पद्धति आठवीं सदी इस्वी में व्यापारियों तथा समुद्री पथिको द्वारा भारत में आई । वहीं कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह पद्धति 12 वीं सदी ईस्वी में भारत में आई । सायद उनका ख्याल होगा की बाबर द्वारा यह पद्धति भारत में आई है। यह प्रमाणित है कि बाबर तथा हिमायू के शासनकाल में बड़ी संख्या में यूनानी चिकित्सा विज्ञान के विद्वान, ईरान तथा पश्चिमी देशों से भारत आए थे, लेकिन यह भी सच है कि बाबर के भारत आने से पहले यूनानी चिकित्सा पद्धति भारत के संपूर्ण भूभाग में प्रचलित थी । भारत में यूनानी चिकित्सा का आगमन आठवीं सदी तथा 12 वीं सदी इस्वी में हुआ यह दोनों विचार तत्वों के विश्लेषण किए बगैर दिया गया प्रतीत होता है । यह प्रमाणित सत्य है कि विज्ञान कला एवं संस्कृति का प्रसार न ही युद्ध के द्वारा होता है और ना ही कोई राजा इसे अपने घोड़े की पीठ पर बांधकर लाता है, हां शासक के रुप मे इसके विकास मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के तौर पर आपको कोरोना महामारी को ले सकते हैं जो कि भारत में हवाई जहाज से पासपोर्ट वीजा के साथ आया था, परंतु इसी बीमारी के रोकथाम के उपाय तथा उपचार का प्रसार संपूर्ण विश्व में बिना किसी वीजा पासपोर्ट के हुआ । 

यूनानी चिकित्सा का सिद्धांत महान विद्वान हिप्पोक्रेट (407 से 370 ईसा पूर्व ) द्वारा दि गई है। यूनानी चिकित्सा अपने उत्पत्ति के महज 200 वर्षों की अल्प अवधि के भीतर से ही भारत में स्वास्थ रक्षा में व्याप्त है । क्योंकि उस समय भारत यूनान में व्यापारिक संबंध थे तथा यूनानी पथिक भी भारत आ चुके थे, इन्हीं व्यापारियों तथा पथिक के द्वारा सिकंदर को भारत की संपन्नता का ज्ञान हुआ, जिस से वह भारत पर विजय के लिए लालायित हुआ । फिलिप द्वितीय का पुत्र, मेकदूनिया का शासक, सिकंदर, यूनानी चिकित्सा के विद्वान अरस्तु का शिष्य था । जिसने 326 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया इसने बैक्टृया (अफगानिस्तान), काबुल, तक्षशिला, अश्वक, पंजाब को जीत लिया । 19 महीने तक सिकंदर अपने सेना के साथ भारत में रहा । 325 ईसा पूर्व में सिकंदर अपने जीते हुए प्रदेशों को अपने सेनापति फिलिप  को सौंप कर, अपने देश वापस हो गया।


 सिकंदर के आक्रमण से भारतीय भूभाग में बहुत से सकारात्मक बदलाव हुआ, जैसे इस से भारत एवं यूरोप के बीच संपर्क स्थापित हुआ, भारत एवं यूनान के बीच कला संस्कृति व्यापार एवं विज्ञान का आदान-प्रदान हुआ, सिकंदर द्वारा युद्ध के समय अपनाए गए जलमार्ग का इस्तेमाल व्यापार के लिए होने लगा,  क्षत्रप प्रणाली, मुद्रा निर्माण, उलूक शैली,  गांधार  शैली का विकास हुआ । यूनानी चिकित्सा जो सिकंदर के आक्रमण के पहले से ही व्यापारियों द्वारा भारत में आ चुकी थी, सिकंदर के बाद निश्चित ही और अधिक विकसित हुई होगी, जिसे बौद्ध भिक्षुओं के लेखनी में ढूंढा जाना चाहिए। दक्षिण भारत में यूनानी चिकित्सा संभवतः अरबों द्वारा सातवीं शताब्दी में आया क्योंकि उस समय दक्षिण भारत के शासक मुख्य रूप से मारवर्मन अवनिसुलमणि के अरबों से व्यापारिक संबंध थे । यूनानी चिकित्सा अरबों द्वारा दिया गया नाम है, अतः उस से पहले यह चिकित्सा विज्ञान बिना किसी विशिष्ट नाम के भारत में प्रचलित रही होगी, जो कि 7 से 8 वीं सदी इस्वी से यूनानी चिकित्सा के नाम से जानी जाने लगी । यही कारण है कि लोगों की धारणा है की यूनानी चिकित्सा अरबों द्वारा भारत में आई।

मगध (बिहार) जहां सिकंदर आक्रमण करने का साहस नहीं जुटा पाया, यह भूभाग सिकंदर के पहले से ही यूनानी चिकित्सा पद्धति का केंद्र रहा है, जिसे वर्तमान में ए. यू. पी. बिहार विकास के शिखर पर पहुंचने के लिए निरंतर प्रयासरत है।


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