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युनानी चिकित्सापध्दति

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  परिचय  युनानी चिकित्सा भारत कि देशी चिकित्सा पध्दति है, जो भारती य परिवेश के अनुकूल है। आयुष मंत्रालय,भारत सरकार, इसके शिक्षा और अनुसन्धान को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। यह विश्व कि प्राचीन चिकित्सा पध्दतियो मे से एक है। इस चिकित्सा विज्ञान की उत्पत्ति ग्रीक सभ्यता के स्वर्णिम युग में हुआ था , जहां से यह संपूर्ण विश्व में फैल कर लोकप्रिय हो गई। यह एक व्यापक चिकित्सा प्रणाली है जो स्वास्थ्य और बीमारियों के विभिन्न अवस्थाओ के उपचार से संबंधित है। चिकित्सा की इस प्रणाली का निदान और उपचार विभिन्न समग्र अवधारणाओं और स्वास्थ्य एवं उपचार के वैज्ञानि क सिद्धांतों पर आधारित है। यह एक व्यक्ति और उसके पर्यावरण के बीच संबंध को ध्यान में रखता है, मन, शरीर और आत्मा के स्वास्थ्य पर जोर देता है। इस चिकित्सा पध्दति में, स्वभाव, या व्यक्ति का मिजाज़ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। व्यक्ति के लिए सबसे उपयुक्त आहार और जीवनशैली को ध्यान में रखते हुए स्वभाव पर ध्यान दिया जाता है।  औषधि चिकित्सा कि इस प्रणाली में प्राकृति क रूप से रोगों का उपचार किया जाता है। कृत्रिम रासायनि क दवाओं का उपयोग नहीं होता

आईना चीनी

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 आईना चीनी एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ आईना देखने के हैं यह एक ऐसा टूल है जिसके जरिए सुंदरता और चेहरे के देखभाल के लिए प्रयोग में लाया जाता है यूनानी चिकित्सा में इलाज के लिए इसका प्रयोग प्राचीन काल से होता आया है ऐसी धारणा है के आईना देखने से  लकवा के मरीज का चेहरा ठीक हो जाता है संभवत

कार्तिक पूर्णिमा

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 पूर्णिमा कि पूर्ण चंद्रमा, आधी रात का शीतल वातावरण, गंगा-गंडक के संगम का कल कल पानी, नेपाली छावनी के पीछे, कोंहरा घाट के गंडक तट पर सार्धालुओ का जमावड़ा, गंडक के उस तट पर सोनपुर का हरिहर नाथ मंदिर और नदी में भ्रमण कर रहे नाविक एक मनमोहक दृश्य चित्रित करती है। गंगा स्नान मे आस्था कि डुबकी, मानरों कि ढोलक, भक्तों का लोक संगीत के मनमोहक वातावरण में पूजा अर्चना, सद्भावना और प्रेम की अनुभूति कराता है। गंगा तट पर आने वाले सभी मार्गों में आ रहे सार्धालुओ का खचाकछ भीड़, रास्ते के किनारे फुटपाथ पर लगे दुकान, पूरा हाजीपुर मेले में परिवर्तित हो जाता है।

नेपाली छावनी शिवमंदिर कोनहारा घाट,

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 नेपाली शैली में निर्मित शिवमंदिर कोनहारा घाट, हाजीपुर वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर के गंगा-गंडक नदी के संगम के कौनहारा घाट पर बने इस मंदिर को बिहार का खजुराहोकहा जाता है। इस मंदिर को नेपाली सेना के कमांडर माथवरसिंह थापा (1798–1845) ने 1844 AD  मे बनवाया था, इसलिए आम लोगों में यह ‘नेपाली छावनी’ के तौर पर भी लोकप्रिय है। माथवरसिंह थापा, को नेपाल के प्रथम प्रधान मंत्री के रुप में जाना जाता है। इन्हें सत्ता फतेह जंग शाह से प्राप्त हुई थी। इनका जन्म नेपाल राज्य के गंडकी प्रांत के गोरखा जिला में 1798 AD में हुआ था। इनके पिता का नाम नयन सिंह थापा और माता का नाम राणा कुमारी था। यह थापा वंश के अंतिम शासक थे। इनकी हत्या इनके अपने भतीजे जंग बहादुर राणा ने  17  मई 1845 को 47 वर्ष कि आयु मे कर दिया। यह नेपाली मंदिर तीन तल्लों में निर्मित मंदिर है, जिसके के मध्य कोने के चारों किनारों पर कलात्मक काष्ठ स्तंभ हैं, जिनमें युगल प्रतिमाएं रोचकता लिए हुए हैं। मंदिर के निर्माण में ईंट, लौहस्तंभ, पत्थरों की चट्टानें, लकड़ियों की पट्टियों से हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में लाल बलूई पत्थर का शिवलिंग विद्यमान है।

भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति सिकंदर के आक्रमण से पहले से ही प्रचलित है

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 यूनानी चिकित्सा भारत की देशी चिकित्सा पद्धति है, जो कि भारतीय परिवेश के अनुकूल है। इस चिकित्सा विज्ञान की उत्पत्ति ग्रीक सभ्यता के स्वर्णिम युग में हुआ था, जहां से यह संपूर्ण विश्व में फैल कर लोकप्रिय हो गई। भारत में यूनानी चिकित्सा के आगमन के संबंध में ज्यादातर इतिहासकार लिखते हैं कि यह पद्धति आठवीं सदी इस्वी में व्यापारियों तथा समुद्री पथिको द्वारा भारत में आई । वहीं कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह पद्धति 12 वीं सदी ईस्वी में भारत में आई । सायद उनका ख्याल होगा की बाबर द्वारा यह पद्धति भारत में आई है। यह प्रमाणित है कि बाबर तथा हिमायू के शासनकाल में बड़ी संख्या में यूनानी चिकित्सा विज्ञान के विद्वान, ईरान तथा पश्चिमी देशों से भारत आए थे, लेकिन यह भी सच है कि बाबर के भारत आने से पहले यूनानी चिकित्सा पद्धति भारत के संपूर्ण भूभाग में प्रचलित थी । भारत में यूनानी चिकित्सा का आगमन आठवीं सदी तथा 12 वीं सदी इस्वी में हुआ यह दोनों विचार तत्वों के विश्लेषण किए बगैर दिया गया प्रतीत होता है । यह प्रमाणित सत्य है कि विज्ञान कला एवं संस्कृति का प्रसार न ही युद्ध के द्वारा होता है और ना ही कोई राजा

कैंसर रोगी के लिए आहार

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 कैंसर शरीर की कोशिकाओं में असामान्य  तथा अनियंत्रित वृद्धि  है जो शरीर के अन्य हिस्से में फैलने की क्षमता रखती है। इसे यूनानी चिकित्सा पद्धति में सर्तान कहते हैं। यूनानी चिकित्सा विज्ञान के अनुसार यह "अखलाक सौदा" से होने वाली बीमारी है अर्थात सौदा अपने सामान्य गुण से परिवर्तित होकर रोग का कारण बन जाता है। मूलभूत रूप से यह सुए मिजाज का मर्ज है, जो बाद में सुए तरकीब तथा तफ्फरुके इतसाल का भी कारण बन जाता है अर्थात मर्ज मुरक्काब का रूप धारण कर लेता है । जोखिम कारक: वह सभी कारक जो शरीर में अधिक सौदा  बनाता है इस रोग का जो जोखिम कारक है। शरीर में चार प्रकार का अखलात होता है: दम (खून), बलगम, सफरा तथा सौदा । हम जो भी खाद्य पदार्थ भोजन के रूप में खाते हैं यह शरीर में पाचन के चार अनुक्रमिक अवस्थाओं से होकर शरीर का हिस्सा बनता है।  पाचन के चार अनुक्रमिक अवस्था: हज्म मेदी, हज्म कबदी, हज्म उरूकी तथा हज्म उज़वी है । हज्म कबदी यानी पाचन के द्वितीय अवस्था में भोजन से अखलाक का निर्माण होता है। आदर्श रूप में भोजन से हज्म कबदी के उपरांत चार खिल्त दम, बलगम, सफरा एवं सौदा का निर्माण होता है। पर

मलद्वार या गुदा बाहर आना - Rectal Prolapse

  मलद्वार या गुदा बाहर आना - Rectal Prolapse    मलद्वार बाहर आना या गुदा का बाहर आना वैसी चिकित्सीय हालत है, जिसमें मलाशय (Rectum) का कुछ हिस्सा गुदा के माध्यम से बाहर निकल आता है। ये यूनानी चिकित्सा पद्धति में मर्ज वजअ है। मलाशय बड़ी आंत का आखरी हिस्सा है और गुदा वह जगह है, जहां से मल शरीर से बाहर निकलता है।   मलद्वार बाहर आने की समस्या 1 लाख में से केवल 2.5 लोगों को प्रभावित करती है।   50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में पुरुषों की तुलना इस बीमारी के होने का खतरा 6 गुना अधिक होता है। बच्चे जिसे अधिक समय तक दस्त/ पेचिस/ कब्ज हो में हो सकता है। बूढ़े व्यक्ति में या कब्ज के मरीज/ बावाशीर के मरीज/ जिन्हे मल द्वार का सर्जरी हुआ हो, उन्हें मलद्वार के बाहर आने का खतरा ज्यादा होता है। मलद्वार बाहर आने की समस्या हल्के से लेकर गंभीर लक्षणों वाली हो सकती है। ज्यादा तर मामलों में ये समस्या यूनानी चिकित्सा से ठीक हो जाता है परंतु गंभीर मामलों में सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। गुदा बाहर आने के लक्षण: गुदा या मलद्वार बाहर आना के लक्षणों में गुदा से बाहर एक उभार या लाल रंग के मांस का टुकड़ा दिखता ह